विक्रमोत्सव 2025 ने उज्जैन को एक बार फिर से विश्व स्तर पर सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का केन्द्र बना दिया है। इस वर्ष विक्रमोत्सव का आयोजन 26 फरवरी से हुआ है और यह समारोह आगामी 30 जून तक, यानी 127 दिन तक चलने वाला है। यह दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला बहुआयामी उत्सव होगा, जिसमें विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक गतिविधियाँ आयोजित की जाएंगी। इस महोत्सव के माध्यम से उज्जैन न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर को पुनः उजागर करेगा, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति और विज्ञान के योगदान को भी प्रस्तुत करेगा।

विक्रमोत्सव का महत्व और इसकी शुरुआत
विक्रमोत्सव का इतिहास भारतीय संस्कृति और पौराणिक धरोहर से गहरा संबंध रखता है। हर साल आयोजित होने वाला यह उत्सव विक्रमादित्य के शासनकाल की महिमा का प्रतीक है। विक्रमादित्य, जिनका नाम भारतीय इतिहास में एक महान सम्राट के रूप में लिया जाता है, उनके द्वारा किए गए कार्यों और उनके योगदान को याद करने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।
पिछले वर्ष 2024 में विक्रमोत्सव का शुभारंभ माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया था, जब उन्होंने 29 फरवरी को वर्चुअल रूप से विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण किया था। यह घड़ी न केवल भारतीय वैदिक विज्ञान का एक अद्वितीय उदाहरण है, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी देखा जाता है। इस घड़ी के निर्माण और लोकार्पण से यह सिद्ध हुआ कि भारतीय संस्कृति और विज्ञान का ज्ञान कितना प्राचीन और अद्भुत है।
विक्रमोत्सव-2025 की विशेषताएँ
विक्रमोत्सव 2025 का आयोजन इस वर्ष 127 दिनों तक होगा, जो इसे एक ऐतिहासिक और उल्लेखनीय पर्व बनाता है। इस दौरान कई तरह के सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षिक कार्यक्रम होंगे, जो भारतीयता की विविधता और समृद्धता को दर्शाते हैं। इस महोत्सव के प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं:
- कलश यात्रा और विक्रम व्यापार मेला:
विक्रमोत्सव की शुरुआत में कलश यात्रा का आयोजन किया जाता है, जो धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं का प्रतीक है। यह यात्रा शहर के विभिन्न हिस्सों से होते हुए महाकालेश्वर मंदिर तक पहुंचती है। साथ ही, विक्रम व्यापार मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प, पारंपरिक वस्त्र, और स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी होती है। यह मेला न केवल व्यापारियों के लिए एक अवसर है, बल्कि पर्यटकों और आगंतुकों को भारतीय कला और संस्कृति से परिचित कराने का एक बेहतरीन माध्यम भी है। - विक्रम नाट्य समारोह और पौराणिक फिल्मों का महोत्सव:
इस उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा विक्रम नाट्य समारोह है, जिसमें विभिन्न नाटकों के माध्यम से भारतीय पौराणिक कथाओं को मंचित किया जाता है। इसके अलावा, पौराणिक फिल्मों का महोत्सव भी आयोजित किया जाता है, जिसमें भारतीय सिनेमा की ऐतिहासिक और धार्मिक फिल्मों का प्रदर्शन होता है। यह आयोजन दर्शकों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। - जनजातीय वैद्य शिविर और महादेव मूर्तिकला कार्यशाला:
इस महोत्सव में जनजातीय वैद्य शिविर भी आयोजित किया जाता है, जिसमें भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और हर्बल उपचारों का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही, महादेव मूर्तिकला कार्यशाला भी आयोजित की जाती है, जहां कलाकार भगवान शिव की मूर्तियों को तैयार करने की कला का प्रदर्शन करते हैं। यह कार्यक्रम न केवल कला प्रेमियों के लिए आकर्षक है, बल्कि भारतीय पारंपरिक शिल्पकला को जीवित रखने का एक प्रयास भी है। - अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और राष्ट्रीय विज्ञान समागम:
विक्रमोत्सव में साहित्य और विज्ञान दोनों को ही विशेष महत्व दिया गया है। इस अवसर पर अखिलभारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर के प्रतिष्ठित कवि अपनी रचनाओं का पाठ करते हैं। यह कार्यक्रम भारतीय काव्यशास्त्र और साहित्य की धारा को सम्मानित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, राष्ट्रीय विज्ञान समागम का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें वैज्ञानिक चर्चा और शोध प्रस्तुतियाँ होती हैं, जो भारतीय विज्ञान के योगदान को उजागर करती हैं। - खगोलशास्त्र और ज्योतिष संगोष्ठी:
विक्रमोत्सव में खगोलशास्त्र और ज्योतिष के क्षेत्र में भी विशेष कार्यक्रम होते हैं। इस संगोष्ठी में भारत और दुनिया भर के खगोलशास्त्रियों और ज्योतिषियों का संगम होता है, जहां वे अपनी शोध, सिद्धांतों और ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। यह कार्यक्रम भारतीय वैदिक खगोलशास्त्र की प्राचीन धरोहर को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। - जल संवर्धन अभियान और अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन:
इस महोत्सव के दौरान जल संवर्धन के महत्व को रेखांकित करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें दुनिया भर के जल विशेषज्ञ जल संकट और संरक्षण के मुद्दों पर चर्चा करते हैं। यह आयोजन जल संसाधनों के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने का एक अहम कदम है। - सूर्योपासना और सृष्टि आरंभ दिवस:
विक्रमोत्सव के समापन पर सूर्योपासना और सृष्टि आरंभ दिवस का आयोजन होता है, जिसमें लोग सूर्य की उपासना करते हैं और सृष्टि के आरंभ की धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हैं। यह दिवस भारतीय धार्मिक परंपराओं और सूर्य की महिमा को मान्यता देने का एक विशेष अवसर है।
विक्रमोत्सव 2025 उज्जैन में न केवल भारतीय संस्कृति, विज्ञान, और परंपराओं का उत्सव है, बल्कि यह एक ऐसा मंच है, जहां विश्वभर के लोग भारतीयता और उसकी विविधताओं का अनुभव कर सकते हैं। यह उत्सव भारतीय समाज के सामूहिक प्रयासों और योगदानों को सम्मानित करता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बनता है। विक्रमोत्सव का आयोजन उज्जैन को एक वैश्विक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित करता है और भारत के ऐतिहासिक धरोहर को पुनः जीवित करता है।