
छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा कही जाने वाली महानदी अब एक नए रूप में संवरने जा रही है। धमतरी जिले के सिहावा स्थित उद्गम स्थल श्री गणेश घाट में “मां महानदी जागरूकता अभियान” के तहत व्यापक सौंदर्यीकरण और पुनरुद्धार कार्य शुरू हो चुका है। यह पहल न केवल धार्मिक आस्था को बल देगी, बल्कि क्षेत्रीय पर्यटन को नई दिशा देने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर भी सृजित करेगी।
Highlights
श्री गणेश घाट वर्षों से छत्तीसगढ़ के अलावा ओडिशा, आंध्रप्रदेश और मध्यप्रदेश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। अब यह स्थान अपने विकसित स्वरूप और सुव्यवस्थित अवसंरचना के कारण पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा। सावन मास में लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को अब और भी रमणीय और सुव्यवस्थित वातावरण में दर्शन व स्नान का सौभाग्य प्राप्त होगा।
10 किलोमीटर क्षेत्र का होगा कायाकल्प
जानकारी के अनुसार, उद्गम स्थल के आसपास लगभग 10 किलोमीटर क्षेत्र में व्यापक विकास कार्य किए जा रहे हैं। इनमें सड़कों का निर्माण, एनीकट (छोटा बांध) का निर्माण, घाटों का जीर्णोद्धार और पूरे क्षेत्र का पर्यावरणीय सौंदर्यीकरण शामिल है। घाट क्षेत्र में 20,000 वर्गफुट में रंगीन पेंटिंग्स बनाई जा रही हैं, जिनकी अनुमानित लागत 20 लाख रुपये है। यह भित्तिचित्र श्रृंखला सोशल मीडिया युग में सेल्फी प्वाइंट के रूप में खासा लोकप्रिय हो रही है।
“महानदी केवल नदी नहीं, एक सांस्कृतिक विरासत है”
धमतरी कलेक्टर अविनाश मिश्रा ने बताया कि “मां महानदी जागरूकता अभियान” के तहत 15-20 किलोमीटर क्षेत्र को पुनर्जीवित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “महानदी सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर है, जिसे संजोना हमारा दायित्व है।”
कलेक्टर ने बताया कि क्षेत्र को पर्यटन हब के रूप में विकसित करने हेतु विस्तृत परियोजना राज्य सरकार को भेजी गई है। प्रस्तावित एनीकट निर्माण से जल स्तर को स्थिर बनाए रखने में मदद मिलेगी, जिससे आसपास के इलाकों में जल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
स्थानीय लोगों को मिलेगा रोजगार
इस विकास परियोजना से स्थानीय युवाओं और ग्रामीणों को स्थायी आजीविका के नए अवसर मिलेंगे। चाहे पर्यटन आधारित स्वरोजगार हो, गाइड सेवाएं, खानपान से जुड़े उद्यम हों या स्थानीय हस्तशिल्प और उत्पादों की बिक्री — यह पहल सभी के लिए संभावनाओं का नया द्वार खोल रही है।
गांव में दिखा उत्साह, उम्मीदों को मिले पंख
सिहावा और आसपास के गांवों में युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक इस पहल को लेकर गहरा उत्साह देखा जा रहा है। लोगों को उम्मीद है कि यह परियोजना न केवल क्षेत्र को एक नई पहचान देगी, बल्कि स्थानीय संस्कृति, कला और व्यवसाय को भी बढ़ावा देगी। पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी प्रशासन के इस कदम की सराहना की है। उनका मानना है कि यह अभियान नदी और उसके उद्गम स्थल के संरक्षण का एक प्रेरणास्पद उदाहरण बनेगा, जिससे आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और समृद्ध जल स्रोत मिल सकेगा।
सिहावा से लेकर बंगाल की खाड़ी तक का प्रवाह
भारत की प्रमुख नदियों में से एक महानदी का उद्गम सिहावा पर्वतमाला से होता है। यह नदी छत्तीसगढ़ और ओडिशा से होकर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में समाहित होती है। धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत और भौगोलिक महत्व — इन सभी दृष्टियों से महानदी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसे समय में जब जल स्रोतों के संरक्षण और पुनर्जीवन की वैश्विक आवश्यकता महसूस की जा रही है, सिहावा का यह अभियान एक अनुकरणीय मिसाल के रूप में उभर रहा है।