भगोरिया पर्व: मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर और लोक उत्सव

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By Mrig Krishna

झाबुआ जिले का भगोरिया गांव भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इस गांव का इतिहास और संस्कृति हमेशा से जनजातीय परंपराओं का प्रतीक रही है। मान्यता के अनुसार, यह भृगु ऋषि की तपस्थली रही है, जो यहां तपस्या किया करते थे। यही कारण है कि झाबुआ के भगोरिया पर्व की शुरुआत भी इसी स्थान से हुई थी। आज भी यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है। झाबुआ की इस धरा पर आकर इस पर्व की रौनक और संस्कृति का हिस्सा बनना एक अद्वितीय अनुभव होता है। यह महत्त्वपूर्ण पर्व जनजातीय संस्कृति, सामाजिक समरसता और पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक बन चुका है।

भगोरिया पर्व विशेष रूप से मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में मनाया जाता है, खासकर झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी धार और रतलाम जिलों में। यह पर्व होली से पूर्व मनाया जाता है और इसके दौरान पूरे क्षेत्र में विशेष प्रकार की धूमधाम और उल्लास का माहौल होता है। भगोरिया पर्व की विशेषता यह है कि इसमें न केवल पारंपरिक सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं, बल्कि यह क्षेत्र की विशिष्ट परंपराओं, लोक गीतों, नृत्य और हर्षोल्लास का भी प्रतीक बन चुका है।

भगोरिया का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

भगोरिया पर्व की शुरुआत लगभग हजारों साल पहले हुई मानी जाती है, जब इस क्षेत्र में जनजातीय समुदायों के लोग अपनी परंपराओं और संस्कृतियों का पालन करते हुए अपने कृषि कार्यों को मनाने के लिए इस पर्व की शुरुआत करते थे। यह पर्व फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है, जिससे यह पर्व कृषि आधारित जीवनशैली का हिस्सा बन गया था। साथ ही, यह प्रकृति और पर्यावरण के साथ जुड़ी एक पूजा का भी प्रतीक बन गया था।

भगोरिया पर्व का आयोजन सामान्यतः फागुन माह की पूर्णिमा के आसपास किया जाता है, जो कि होली से पूर्व का समय होता है। यह पर्व इस क्षेत्र के जनजातीय समुदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। भगोरिया पर्व में विविध प्रकार की गतिविधियाँ होती हैं, जिसमें नृत्य, गीत, मेला, और पारंपरिक खेल शामिल होते हैं। इस पर्व को लेकर क्षेत्र की जनता में अपार उत्साह और आनंद होता है।

भगोरिया पर्व की परंपराएँ

भगोरिया पर्व की सबसे बड़ी विशेषता इसकी परंपराएँ हैं, जो समय के साथ चली आ रही हैं। इस पर्व के दौरान लोग पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं, जिसमें विशेष प्रकार की चूड़ियाँ, आभूषण और फूलों की माला प्रमुख होते हैं। महिलाएँ खासकर अपनी सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाने के लिए पारंपरिक चूड़ियाँ और अन्य आभूषण पहनती हैं। पुरुष भी पारंपरिक परिधान में नज़र आते हैं। यह पर्व समाज में एक दूसरे के प्रति आत्मीयता, प्रेम और स्नेह बढ़ाने का एक माध्यम बनता है। लोग एक दूसरे से मिलते हैं, नृत्य करते हैं, और पारंपरिक गीत गाते हैं, जिससे सामाजिक समरसता का संदेश मिलता है।

भगोरिया पर्व का प्रमुख आकर्षण यहां का पारंपरिक मादल, बासुरी और थाली की झंकार होती है। इन वाद्ययंत्रों की आवाज के साथ यह पर्व जीवंत हो उठता है और वातावरण में उल्लास फैल जाता है। मादल की थाप और बासुरी की तान इस पर्व के प्रमुख प्रतीक हैं, जो इसकी लोकधर्मिता और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं।

भगोरिया पर्व का सामाजिक समरसता पर प्रभाव

भगोरिया पर्व सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान विभिन्न समुदाय के लोग एक साथ आते हैं, आपस में मिलते हैं और अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों का आदान-प्रदान करते हैं। यह पर्व एकता और भाईचारे का संदेश देता है। हर वर्ष भगोरिया पर्व के दौरान हजारों की संख्या में लोग इस पर्व में भाग लेने के लिए झाबुआ, अलीराजपुर बड़वानी धार जिलों में आते हैं। यहाँ लोग एक दूसरे से भेदभाव और संप्रदायिक विभाजन के बिना मिलते हैं, जिससे यह पर्व समाज में एकता और समानता की भावना को बढ़ावा देता है।

इसके अतिरिक्त, भगोरिया पर्व के दौरान किए जाने वाले आयोजन और कार्यक्रम बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों को एक साथ जोड़ते हैं। यह परिवारों और समुदायों के बीच संबंधों को मजबूत करता है और सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ़ बनाता है।

भगोरिया पर्व और पर्यावरण संरक्षण

भगोरिया पर्व में पर्यावरण संरक्षण का भी गहरा संबंध है। इस पर्व के दौरान लोग जंगलों में पूजा करते हैं और वहां के देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं। यह पर्व न केवल मानवता के साथ, बल्कि प्रकृति के साथ भी सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है। जनजातीय समाज की यह परंपरा प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना को उजागर करती है। इस पर्व के द्वारा लोग जंगलों और पेड़-पौधों की पूजा करते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलता है।

भगोरिया को राजकीय पर्व के रूप में मनाने का निर्णय

भगोरिया पर्व की महत्ता को ध्यान में रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि इसे अब राजकीय पर्व के रूप में मनाया जाएगा। इससे न केवल पर्व की पारंपरिकता और महत्त्व को बनाए रखने में मदद मिलेगी, बल्कि यह जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं के संरक्षण में भी सहायक सिद्ध होगा। राजकीय स्तर पर इसे मनाने से इस पर्व को एक और नई पहचान मिलेगी और यह दुनिया भर में अपनी अनूठी संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने में सक्षम होगा।

झाबुआ के इस पावन स्थल पर भगोरिया पर्व का आयोजन न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर भी बन चुका है। इसके जरिए हमें न केवल अपने इतिहास और संस्कृति को समझने का मौका मिलता है, बल्कि हम सामूहिकता, एकता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का भी पाठ सीखते हैं।

निष्कर्ष

भगोरिया पर्व झाबुआ की सांस्कृतिक धरोहर और जनजातीय जीवनशैली का अमूल्य हिस्सा है। यह पर्व न केवल होली की पूर्व संध्या पर खुशी और उल्लास का अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, प्रेम, स्नेह और एकता का प्रतीक भी बन चुका है। राजकीय पर्व के रूप में मनाए जाने का निर्णय इस पर्व की महत्ता को और बढ़ाता है और इसे एक विश्वस्तरीय पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

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