
पिथौरा (छत्तीसगढ़) – एक शिक्षक का दायित्व होता है ज्ञान का दीप जलाना, लेकिन जब शिक्षक ही चालाकी और हेरफेर का पाठ पढ़ाने लगें, तो शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है पिथौरा विकासखंड से, जहां कुछ अनुभवहीन शिक्षक वरिष्ठता सूची में कूटरचना (फर्जीवाड़ा) कर खुद को सीनियर बताकर प्रधानपाठक की कुर्सी तक पहुँच गए।
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जैसे ही इस गड़बड़ी की भनक जिला शिक्षा कार्यालय को लगी, पूरे महकमे में हड़कंप मच गया। तत्काल प्रभाव से पिथौरा विकासखंड के पांच शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर हलचल मचा रहा है, बल्कि एक बार फिर यह सवाल भी उठा रहा है – क्या अब शिक्षक भी सत्ता और पद के लिए ईमानदारी की राह छोड़ रहे हैं?
वरिष्ठता सूची में गड़बड़ी – कैसे हुआ खेल?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, दो साल पहले राज्य शासन ने सहायक शिक्षकों को प्रधानपाठक पद पर पदोन्नत करने का आदेश जारी किया था। यह एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया होती, यदि इसमें कुछ ‘चतुर’ शिक्षकों ने नियमों की धज्जियां न उड़ाई होतीं।
इन शिक्षकों ने अपने अनुभव और सेवा काल से जुड़ी वरिष्ठता सूची में फर्जीवाड़ा किया – दस्तावेजों में फेरबदल कर खुद को वास्तविक से अधिक अनुभवी और वरिष्ठ दर्शा दिया। यह गड़बड़ी इतनी सफाई से की गई कि वे योग्य व अनुभवशील शिक्षकों को किनारे कर खुद प्रधानपाठक बन बैठे।
फर्जीवाड़े की परतें खुली तो…
कुछ वंचित पात्र शिक्षकों ने इस गड़बड़ी को लेकर उच्चाधिकारियों से शिकायत की। जाँच शुरू हुई, दस्तावेज खंगाले गए और तब जाकर सामने आया यह पूरा खेल – वरिष्ठता सूची में जानबूझकर कूटरचना कर पदोन्नति पाई गई थी।
जिला शिक्षा अधिकारी ने संज्ञान लेते हुए पिथौरा विकासखंड के जिन पाँच शिक्षकों पर संदेह की सूई घूमी, उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा है। अब उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि उनकी पदोन्नति प्रक्रिया में कहीं कोई फर्जीवाड़ा हुआ या नहीं – और यदि हुआ तो उसके लिए जिम्मेदार कौन?
कौन-कौन हैं आरोपी शिक्षक?
स्थानीय विकासखंड शिक्षा अधिकारी लक्ष्मी डड़सेना ने पुष्टि की कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने जिन शिक्षकों को नोटिस भेजा है, उनके नाम इस प्रकार हैं:
- दिनेश प्रधान – प्रधानपाठक, खैरखूँटा
- गौरी नायक – प्रधानपाठक, पंडरीपानी
- जयलाल भोई – प्रधानपाठक, विश्वासपुर
- नारायण सिदार – प्रधानपाठक, कुदरीदादर
- अभिमन्यु सिन्हा – प्रधानपाठक, नवाडीह
इन सभी को अब अपने दस्तावेजों की पारदर्शिता साबित करनी होगी। जाँच के बाद यदि दोष सिद्ध होता है तो इनकी पदोन्नति रद्द हो सकती है और विभागीय कार्रवाई भी हो सकती है।
शासकीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है जब शासकीय पदोन्नति प्रक्रिया में गड़बड़ियों की बात सामने आई हो। नियुक्तियों से लेकर वेतन भुगतान तक, सरकारी महकमों में कुशलता की जगह कुटिलता का बोलबाला अब आम बात हो चुकी है।
लोगों को उम्मीद होती है कि शिक्षक जैसे पदों पर आसीन लोग नैतिकता और अनुशासन के उच्चतम स्तर का पालन करेंगे, लेकिन जब शिक्षक ही नियमों से खिलवाड़ करें, तो यह न केवल एक संस्था की गरिमा को ठेस पहुँचाता है बल्कि शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद को भी हिला देता है।
क्या कहते हैं जानकार?
शिक्षाविदों और प्रशासनिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी घटनाएँ सिर्फ व्यवस्था की कमजोरी नहीं, बल्कि उस सोच की भी देन हैं जो ‘सफलता किसी भी कीमत पर’ का मंत्र लेकर चलती है।
एक सेवानिवृत्त प्रधानपाठक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “आजकल शिक्षक सिर्फ पढ़ाने नहीं, पद और प्रतिष्ठा के लिए होड़ में लगे हैं। जब पदोन्नति के लिए फर्जी दस्तावेज बनाने में भी गुरेज़ नहीं, तो शिक्षा का क्या होगा?”
अब आगे क्या?
फिलहाल, पाँचों शिक्षकों से जवाब मांगा गया है। यदि वे संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए, तो उनकी पदोन्नति रद्द हो सकती है और सेवा शर्तों के उल्लंघन पर कठोर कार्रवाई भी हो सकती है। इससे यह भी साफ़ है कि आगे से विभाग ऐसे मामलों में अधिक सतर्कता बरतेगा।
आखिर कब सुधरेगा सरकारी तंत्र?
हर साल सरकारी विभागों में हजारों पदोन्नतियाँ होती हैं। लेकिन उनमें से कितनी वाकई न्यायपूर्ण और पारदर्शी होती हैं? कहीं न कहीं कोई कमी रह जाती है – कभी जाँच में ढिलाई, तो कभी प्रशासनिक लापरवाही। और फिर ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं, जो लोगों का सरकारी प्रक्रिया से विश्वास उठाने का कारण बनती हैं।
निष्कर्ष – शिक्षा व्यवस्था को चाहिए आत्मनिरीक्षण
यह मामला सिर्फ पाँच शिक्षकों का नहीं, बल्कि एक बड़े वैचारिक और नैतिक संकट का संकेत है। जब शिक्षक ही सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता छोड़कर शॉर्टकट अपनाने लगें, तो आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाया जाएगा?
सरकार और शिक्षा विभाग को अब ऐसे मामलों में केवल नोटिस देने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि वरिष्ठता सूची तैयार करने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, डिजिटल और सत्यापन आधारित बनाना चाहिए ताकि आगे कोई शिक्षकीय पद पर पहुँचने के लिए झूठ का सहारा न ले सके।
आपका क्या कहना है? क्या शिक्षक को पदोन्नति के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेना चाहिए? ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई होनी चाहिए? हमें कमेंट में जरूर बताएं।