राष्ट्र ऋषि भारत रत्न नानाजी देशमुख: एक जीवन जो समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित था

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By Mrig Krishna

भारत रत्न, राष्ट्रऋषि और विराट पुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले नानाजी देशमुख ने न केवल भारतीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उनका जीवन भारतीयता के प्रतीक के रूप में उभरा और उनका योगदान आज भी समाज को प्रेरित करता है। नानाजी का जीवन एक साधारण ग्रामीण से लेकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले महान नेता तक का सफर था। उनके कार्यों और विचारों ने भारतीय समाज में परिवर्तन की लहर बनाई।

नानाजी देशमुख का प्रारंभिक जीवन

नाना जी देशमुख

नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर, 1916 को महाराष्ट्र के परभनी ज़िले के छोटे से गाँव ‘कदोली’ में हुआ था। एक साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद नानाजी ने अपनी मेहनत, निष्ठा और नेतृत्व क्षमता से भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उनका जीवन बचपन से ही संघर्षमय था, लेकिन उनके भीतर समाज के प्रति सेवा की भावना ने उन्हें सदैव प्रेरित किया।

संघ से प्रेरणा और राजनीतिक यात्रा की शुरुआत

नानाजी देशमुख का राजनीतिक और सामाजिक जीवन संघ के स्वयं सेवक के रूप में शुरू हुआ। भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक के रूप में उन्होंने संघ के सिद्धांतों और विचारों का पालन किया और भारतीय समाज को एकजुट करने की दिशा में कार्य किया। वे जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और संघ के विचारों को फैलाने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था।

सामाजिक कार्य और आंदोलनों में भागीदारी

नानाजी देशमुख का जीवन केवल राजनीति तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में भाग लिया और भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि सुधार के लिए कार्य किया। इसके साथ ही, 1974 में इंदिरा गांधी के कुशासन के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलन में भी उनका सक्रिय योगदान था। उनके द्वारा किए गए ये कार्य भारतीय समाज को जागरूक करने में सहायक साबित हुए।

लोकसभा में कार्यकाल और ग्रामीण विकास की दिशा में योगदान

आपातकाल के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए, तब नानाजी देशमुख को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से लोकसभा का सदस्य चुना गया। लोकसभा में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने न केवल देश की राजनीतिक समस्याओं पर ध्यान दिया, बल्कि ग्रामीण अंचलों में शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए भी प्रयास किए। उनका मानना था कि देश की प्रगति तभी संभव है जब हम ग्रामीण भारत के विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को साकार करना

1972 में, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन को साकार करने के उद्देश्य से नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की पावन धरती पर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ की स्थापना की। यह संस्थान ग्रामीण विकास के लिए समर्पित एक आदर्श संस्थान बन गया, जो स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, स्वावलंबन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में सक्रिय रूप से जुटा हुआ है। इस संस्थान ने भारतीय ग्रामीण समाज में एक नया दृष्टिकोण और आशा की किरण दी।

ग्रामीण विकास के लिए ‘जयप्रभा’ और अन्य पहलें

नानाजी देशमुख ने 1978 में गोंडा बलरामपुर के पास जमीन लेकर ‘जयप्रभा’ नाम से ग्राम विकास, गो-संवर्धन, शिक्षा और कृषि तंत्र सुधार से संबंधित कार्य प्रारंभ किए। उनके द्वारा शुरू किए गए इन कार्यों का उद्देश्य ग्रामीण भारत की जीवनशैली को सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना था। नानाजी का मानना था कि जब तक भारतीय गांवों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होंगी, तब तक देश की समृद्धि संभव नहीं है।

चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना
नानाजी देशमुख का सपना था कि भारत में शिक्षा ऐसी हो जिसमें संस्कारों का समावेश हो, और यह शिक्षा केवल नौकरी पाने के लिए न हो, बल्कि व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए हो। इस संकल्प को सिद्ध करने के लिए उन्होंने 1991 में चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करना और उन्हें समाज के लिए उपयोगी बनाना था। यह विश्वविद्यालय आज भी नानाजी के विचारों को जीवित रखे हुए है और ग्रामीण विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

नानाजी के विचार और उनका समाज पर प्रभाव
नानाजी देशमुख के विचार और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी समाज को प्रेरित कर रहे हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति अपनी मेहनत, समर्पण और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करके किसी भी मुश्किल परिस्थिति को पार कर सकता है। वे हमेशा लोकतंत्र, शिक्षा और स्वावलंबन का समर्थन करते थे। उनका मानना था कि समाज में बदलाव तभी संभव है जब हम स्वयं को बदलने के लिए तैयार हों।

नानाजी के जीवन का अंतिम संदेश
नानाजी देशमुख का सबसे बड़ा संदेश यह था कि यदि किसी को कुछ करना है, तो वह समाज और राष्ट्र के लिए करे, तभी हमारा जीवन सफल होगा। उनका यह कथन आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें यह याद दिलाता है कि अगर हम समाज और राष्ट्र के लिए काम करते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाएंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक आदर्श स्थापित करेंगे।

राष्ट्र ऋषि भारत रत्न नानाजी देशमुख का जीवन हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति का जीवन न केवल अपनी भलाई के लिए होता है, बल्कि समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए भी होता है। उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके विचार आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता और उनका जीवन भारतीय समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर है।







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